Bas yahi soch rahi hu l Koobra Fatima l

 बस यही सोच रही हूँ, के क्या सोचूं,

बस में कहीं खयालों में ही, मेहदूद न रह जाऊं।


बस यही सोच रही हूँ, के क्या सोचूं,

बस में कहीं खयालों में ही, मेहदूद न रह जाऊं।


दिल की गहराईयों में उसका नाम छुपा है,

उसकी यादों में खोकर, मैं खुद को पाऊं।


कहानी उसकी मेरी रूह में बसी है,

हर सांस में उसकी धड़कन सुनाई देती है।



उसके बिना जीना अधूरा सा लगता है,

क्या कहूं, कैसे कहूं, बस यही सोचूं।


मोहब्बत की राहों में कुछ भी हो सकता है,

पर मैं जुदा न हो जाऊं, बस यही सोचूं।


उसके लिए जी रही हूँ, उसके बिना मर जाऊं,

बस यही सोच रही हूँ, के क्या सोचूं।


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