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  मैं कूब्रा फातिमा, जी भर के मिलना अच्छा लगता है, नए दोस्तों से जीवन का आनंद उठाना अच्छा लगता है।

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मिलने का जो अद्भुत सुख है,

उसे महसूस करना ही अच्छा लगता है।


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नए दोस्तों से जीवन का सफर सुहाना,

कूब्रा फातिमा को यह सब अच्छा लगता है।




 जंगल की गोद में चमत्कार: एक माँ की गलती और अल्लाह की रहमत


 "जंगल की गोद में चमत्कार: एक माँ की गलती और अल्लाह की रहमत"

बहुत समय पहले की बात है, एक छोटे से गाँव में एक गरीब विधवा महिला अपनी इकलौती बेटी के साथ रहती थी। उसका नाम शगुफ़्ता था, और उसकी बेटी का नाम सारा। शगुफ़्ता की ज़िंदगी बेहद कठिन थी। पति की मृत्यु के बाद, वह अपने समाज से बहिष्कृत हो चुकी थी और हर तरफ से तिरस्कार झेल रही थी। लोग उसे दोषी मानते थे, और उसकी गरीबी को उसके कर्मों का फल समझते थे।

सारा, एक मासूम और प्यारी लड़की, हर दिन अपनी माँ को संघर्ष करते हुए देखती थी। उसकी माँ की आँखों में दर्द और बेबसी साफ़ दिखाई देती थी। शगुफ़्ता चाहती थी कि उसकी बेटी को इस कठोर दुनिया का सामना न करना पड़े, लेकिन गरीबी ने उसे इतना कमजोर बना दिया था कि वह खुद ही हार मानने लगी थी। एक दिन जब गरीबी और तिरस्कार ने शगुफ़्ता को पूरी तरह तोड़ दिया, तो उसने एक क्रूर फैसला किया। उसने सोचा कि इस समाज और जीवन के दुखों से बेहतर होगा कि सारा का अंत हो जाए।

शगुफ़्ता ने एक दिन सारा को जंगल में ले जाकर फेंक दिया, ताकि जंगली जानवर उसे खा जाएं और वह अपनी तकलीफों से मुक्ति पा सके। उसने दिल भारी कर लिया और सारा को अकेला छोड़कर वापस लौट आई। उसके मन में गिल्ट और पीड़ा तो थी, लेकिन उसे लगा कि यही सही था, ताकि उसकी बेटी इस दुनिया के दुखों से बच सके।

जंगल का चमत्कार



सारा अब जंगल में अकेली थी। रोते-रोते उसकी आँखें सूज गई थीं, और उसका दिल डर से कांप रहा था। उसे नहीं पता था कि उसकी माँ ने ऐसा क्यों किया। वह बस सोच रही थी कि माँ उसे क्यों छोड़ गई। जब सारा घने जंगल में बैठी थी, तभी एक अद्भुत घटना घटी। अचानक से आसमान पर काले बादल छा गए, और जंगल में चारों ओर अंधेरा फैल गया।

सारा को चारों ओर से जानवरों की आवाज़ें सुनाई दे रही थीं। शेर की दहाड़, भेड़ियों की आवाज़, उसे लगा कि उसका अंत निकट है। लेकिन तभी एक बहुत ही तेज़ रोशनी उसके सामने प्रकट हुई। वह रोशनी इतनी तीव्र थी कि सारा को अपनी आँखें बंद करनी पड़ीं।

रोशनी के बीच से एक सफेद पोशाक में एक बुजुर्ग महिला दिखाई दी। वह बहुत शांत और दिव्य थी। उसके चेहरे पर एक अजीब सी शांति थी, जो सारा को कुछ हद तक आश्वस्त कर रही थी। बुजुर्ग महिला ने सारा को अपने पास बुलाया और कहा, "बेटी, डरो मत। अल्लाह ने तुम्हें इस दुनिया में भेजा है एक खास मकसद के लिए। तुम्हारा जीवन अनमोल है, और तुम्हें अभी बहुत कुछ करना है। तुम्हारी माँ ने यह जो किया है, वह उसकी मजबूरी थी, लेकिन यह तुम्हारे भाग्य का हिस्सा नहीं है।"

सारा ने आश्चर्य से उस बुजुर्ग महिला की ओर देखा और पूछा, "आप कौन हैं?" बुजुर्ग महिला ने मुस्कुराते हुए जवाब दिया, "मैं वह हूं जिसे तुम्हारी रक्षा के लिए भेजा गया है। अल्लाह ने तुम्हें जंगली जानवरों से बचाने के लिए मुझे यहां भेजा है। तुम्हारे जीवन में अभी बहुत कुछ बाकी है, और तुम्हारा काम इस दुनिया में बहुत अहम है।"

सारा की आँखों में आशा की चमक आ गई। उसने सोचा कि शायद उसका जीवन अब खत्म नहीं होगा। बुजुर्ग महिला ने उसे अपने साथ जंगल के दूसरे हिस्से में ले जाकर उसे सुरक्षित किया। वहाँ पर सारा को पानी और खाना मिला, और वह धीरे-धीरे अपने डर से उबरने लगी।

माँ की पश्चाताप

उधर, शगुफ़्ता को घर आकर चैन नहीं मिला। उसने जो किया था, वह उसे भीतर से खा रहा था। उसकी आँखों से आँसू बहने लगे, और उसका दिल दुख से भर गया। उसे लगने लगा कि उसने अपनी बेटी के साथ बहुत गलत किया है। वह पूरी रात सो नहीं पाई और हर पल अपनी बेटी के बारे में सोचती रही। अगले दिन, जब सुबह हुई, तो शगुफ़्ता से रहा नहीं गया।

वह तुरंत जंगल की ओर भागी। रास्ते में उसके दिल में बहुत सारी बातें घूम रही थीं। "क्या मैंने सही किया?" "क्या मेरी बेटी अब इस दुनिया में नहीं है?" ये सवाल उसके दिल में बार-बार उठ रहे थे। वह तेजी से जंगल में पहुँची, लेकिन उसे वहाँ अपनी बेटी नहीं मिली।

शगुफ़्ता अब पूरी तरह से टूट चुकी थी। वह जमीन पर बैठ गई और ज़ोर-ज़ोर से रोने लगी। "अल्लाह! मुझसे बहुत बड़ी गलती हो गई। मैंने अपनी मासूम बेटी को क्यों छोड़ दिया?" वह पश्चाताप में डूब गई थी।

सारा की वापसी

इसी बीच, सारा बुजुर्ग महिला के साथ जंगल के सुरक्षित स्थान पर थी। वह अब शांत थी और जानती थी कि उसका जीवन महत्वपूर्ण है। कुछ देर बाद, वह बुजुर्ग महिला के साथ गाँव की ओर लौटने लगी। जब वे गाँव के पास पहुँचे, तो सारा ने अपनी माँ को जंगल में रोते हुए देखा।

सारा ने दौड़कर अपनी माँ को गले लगा लिया। शगुफ़्ता ने उसे देखकर विश्वास नहीं किया। उसकी बेटी जिंदा थी! वह रोते हुए सारा को गले लगाती रही और कहती रही, "मुझे माफ़ कर दे, बेटा। मैंने बहुत बड़ी गलती की।" सारा ने अपनी माँ को सांत्वना दी और कहा, "माँ, जो हुआ, वह अल्लाह की मर्जी थी। अब हमें नए सिरे से शुरुआत करनी है।"

कहानी से शिक्षा

इस कहानी से हमें कई महत्वपूर्ण सीख मिलती हैं:

  1. अल्लाह की मर्जी और अल्लाह की रहमत: चाहे जीवन में कितनी भी कठिनाइयाँ क्यों न हों, अल्लाह की मर्जी के बिना कुछ नहीं होता। अगर इंसान पर दुख आता है, तो उससे बाहर निकलने का रास्ता भी वही दिखाता है। सारा को जंगल में फेंकने के बावजूद, अल्लाह ने उसकी रक्षा की और उसे एक नया जीवन दिया।

  2. माँ की मजबूरी और पश्चाताप: शगुफ़्ता का निर्णय उसकी मजबूरी का परिणाम था, लेकिन उसने जल्दी ही अपनी गलती को समझा और पश्चाताप किया। हमें इस बात का ध्यान रखना चाहिए कि हर मुश्किल का समाधान होता है, चाहे वो जितनी भी बड़ी क्यों न लगे।

  3. हर जीवन अनमोल है: किसी का जीवन खत्म करने का निर्णय कभी सही नहीं होता। सारा का जीवन एक उद्देश्य के लिए था, और उसे बचाने के लिए अल्लाह ने चमत्कार किया। हमें यह समझना चाहिए कि हर जीवन का मूल्य है, और किसी को भी जीवन के अधिकार से वंचित नहीं किया जा सकता।

  4. आशा और विश्वास: कठिन समय में भी सारा ने उम्मीद नहीं छोड़ी। बुजुर्ग महिला के माध्यम से, उसे विश्वास दिलाया गया कि उसकी जिंदगी का एक उद्देश्य है। इसी तरह, हमें भी मुश्किल वक्त में हार नहीं माननी चाहिए और हमेशा उम्मीद रखनी चाहिए।

कहानी हमें यह सिखाती है कि जीवन में कितनी भी मुश्किलें आएं, हमें कभी हार नहीं माननी चाहिए। अल्लाह पर भरोसा रखना चाहिए, क्योंकि उसकी मर्जी के बिना कुछ भी नहीं होता।

 बस यही सोच रही हूँ, के क्या सोचूं,

बस में कहीं खयालों में ही, मेहदूद न रह जाऊं।


बस यही सोच रही हूँ, के क्या सोचूं,

बस में कहीं खयालों में ही, मेहदूद न रह जाऊं।


दिल की गहराईयों में उसका नाम छुपा है,

उसकी यादों में खोकर, मैं खुद को पाऊं।


कहानी उसकी मेरी रूह में बसी है,

हर सांस में उसकी धड़कन सुनाई देती है।



उसके बिना जीना अधूरा सा लगता है,

क्या कहूं, कैसे कहूं, बस यही सोचूं।


मोहब्बत की राहों में कुछ भी हो सकता है,

पर मैं जुदा न हो जाऊं, बस यही सोचूं।


उसके लिए जी रही हूँ, उसके बिना मर जाऊं,

बस यही सोच रही हूँ, के क्या सोचूं।


 Main Pagli Si Be-Khabar Hoo 

l Koobra Fatima l 

#koobrafatima




मैं पगली सी बे-खबर हूँ,

पेंटिंग और शेर-ओ-शायरी मेरे शौक हैं,

और मैं हूँ कूबराफातिमा ,

ये हैं मेरे शोख, मेरी प्यारी कल। 


जाने क्यों ये दिल धड़कता है,

कलम से कागज़ पर अपनी भावनाएं छिड़कता है।


दिल धड़कने लगता है मेरा,

जब कलम मेरे हाथ में होती है और मैं खुद को भूल जाती हूँ। 


पेंटिंग के कोरसे पर रंग बिखेरूं,

और शेर-ओ-शायरी की बातें लिखूं,

मेरी आत्मा खो जाती है इन ख्यालों में,

क्योंकि ये हैं मेरे शोख और मेरी उल्फत। 


अब कुछ नहीं चाहती मैं,

बस ये शोख हैं मेरे जीने का सहारा,

क्योंकि मेरी रूह में बसी है ये प्यारा।


मैं पगली सी बे-खबर हूँ,

पेंटिंग और शेर-ओ-शायरी मेरे शौक हैं,

और मैं हूँ कूबराफातिमा ,

ये हैं मेरे शोख, मेरी प्यारी कला । 

 इमान की रोशनी



रुख़सार एक साधारण-सी लड़की थी, लेकिन उसकी इमानदारी और उसका अल्लाह पर अटूट विश्वास उसे औरों से अलग बनाता था। वह एक छोटे से गाँव में रहती थी, जहाँ लोग अपनी पुरानी सोच और समाज के बंधनों में जकड़े हुए थे। उसके घर की आर्थिक स्थिति बहुत खराब थी, और पिता के देहांत के बाद, उसके कंधों पर परिवार का पूरा बोझ आ गया था।

रुख़सार को यह बात अच्छे से समझ में आ चुकी थी कि इस दुनिया में सब कुछ अस्थायी है, लेकिन अल्लाह पर भरोसा कभी टूटने नहीं देना चाहिए। हर सुबह वह नमाज़ पढ़ने के बाद अल्लाह से सिर्फ एक ही दुआ मांगती थी: "या अल्लाह, मुझे सही राह दिखाना और मेरी इमानी कश्ती को कभी डगमगाने न देना।"

गाँव में एक व्यापारी था जिसका नाम राशिद था। वह बहुत ही धनी था, लेकिन उसके दिल में लोगों के लिए दया और करुणा की जगह नहीं थी। उसकी नज़रें रुख़सार पर पड़ीं। उसकी सुंदरता और शालीनता से प्रभावित होकर, उसने उसे शादी का प्रस्ताव भेजा। लेकिन रुख़सार ने उसे ठुकरा दिया। राशिद को यह बात बर्दाश्त नहीं हुई। उसने सोचा, "कैसे एक गरीब लड़की मेरे जैसा धनी आदमी ठुकरा सकती है?"

"इंसान का असली धन उसकी इमानदारी और उसका विश्वास है, दौलत नहीं।"

राशिद ने रुख़सार को धमकी दी, "अगर तुमने मेरा प्रस्ताव नहीं स्वीकारा, तो मैं तुम्हारे परिवार को बरबाद कर दूंगा।" पर रुख़सार के चेहरे पर न तो डर था, न घबराहट। उसने शांति से जवाब दिया, "मुझे सिर्फ अल्लाह का डर है, किसी इंसान का नहीं। अगर मेरी नियत साफ है और मेरा ईमान मजबूत है, तो मुझे कोई बरबाद नहीं कर सकता।"

राशिद ने अपनी ताकत का इस्तेमाल कर रुख़सार के परिवार पर अत्याचार शुरू कर दिए। उनके खेतों को नुकसान पहुँचाया गया, उनके व्यापार को बंद करवा दिया गया। हर तरफ से मुसीबतों का पहाड़ खड़ा हो गया। गाँव के लोग भी रुख़सार को समझाने लगे कि उसे इस शादी के लिए मान जाना चाहिए, लेकिन रुख़सार का विश्वास अडिग था। वह रोज़ पाँच वक्त की नमाज़ पढ़ती और अल्लाह से मदद की गुहार लगाती।

एक रात, जब राशिद ने रुख़सार के घर पर हमला करने की योजना बनाई, उस वक्त रुख़सार अकेली थी। उसने नमाज़ पढ़ी और अल्लाह से कहा, "या अल्लाह, अगर मेरी नियत सच्ची है, तो तू मुझे इस जुल्म से बचा। मुझे तेरे अलावा किसी की मदद की जरूरत नहीं।"

उसी रात राशिद के घर में आग लग गई। उसका सारा धन, उसकी सारी दौलत जलकर राख हो गई। वह बर्बाद हो गया और गाँव छोड़कर भाग गया। रुख़सार के परिवार पर से सारे अत्याचार खत्म हो गए। गाँव के लोगों ने इस चमत्कार को देखा और रुख़सार की ईमानदारी और उसके विश्वास की सराहना की। धीरे-धीरे, रुख़सार का परिवार फिर से उठ खड़ा हुआ। उनकी फसलें पहले से बेहतर हुईं, और व्यापार फिर से चमकने लगा।

"जब अल्लाह की रहमत होती है, तो असंभव भी संभव हो जाता है।"

रुख़सार की इमानदारी और अल्लाह पर अटूट विश्वास ने उसे हर मुश्किल से बचाया। उसने कभी अपने ईमान को गिरने नहीं दिया और अल्लाह पर भरोसा किया। उसकी इस कहानी से गाँव के सभी लोगों ने सीखा कि सच्चा ईमान और विश्वास किसी भी दुनिया की ताकत से ज्यादा शक्तिशाली होता है।

"इमान से बड़ी कोई दौलत नहीं।"

 

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